Page Nav

HIDE

Grid

GRID_STYLE

Grid

GRID_STYLE

Hover Effects

TRUE

Pages

Classic Header

{fbt_classic_header}

Breaking News

latest

इंटरनेट का पूरा इतिहास: कब बना, क्यों बना, कैसे बना, किसने बनाया

इंटरनेट...एक ऐसा शब्द जिसके बिना अब शायद जीना भी मुश्किल हो जाएगा। क्या आपने कभी सोचा है कि आजकल के जमाने में अगर एक दिन ,  एक घंटे या सिर्...

इंटरनेट...एक ऐसा शब्द जिसके बिना अब शायद जीना भी मुश्किल हो जाएगा। क्या आपने कभी सोचा है कि आजकल के जमाने में अगर एक दिनएक घंटे या सिर्फ एक मिनट के लिए भी इंटरनेट बंद हो जाए तो क्या होगा...इंटरनेट के सिर्फ एक मिनट भी बंद हो जाने से पूरी दुनिया में लाखों करोंड़ों रुपयों का नुकसान तो होगा कि इसके साथ-साथ कई तरह की बर्बादी का मंजर भी देखना पड़ सकता है।





ऐसे में अब बिना इंटरनेट के जीना भी मुश्किल हो गया है। एक आम आदमी भी अपनी आम जिंदगी को सिर्फ इंटरनेट के सहारे थोड़ी खास बना लेता है। उस साधारण व्यक्ति की लाइफ थोड़ी सुविधाजनक हो जाती है। आप भी इंटरनेट का काफी इस्तेमाल करते होंगे लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि आखिर ये इंटरनेट कैसे बनाकब बनाकिसने बनायाक्यों बनाया। कभी ना कभी आपके मन में ऐसे सवाल जरूर आते होंगे। आइए हम आपको इन सभी सवालों के जवाब बताते हैं।

सोवियत संघ ने लॉन्च किया पहला मैन मेड सैटेलाइट इंटरनेट की कहानी बड़ी मजेदार है। इसकी शुरुआत एक लड़ाई की वजह से हुई है। अक्टूबर 1957 को पृथ्वी पर एक अद्भूत घटना घटी जिसने पूरी दुनिया को बदलने की एक राह दिखा दी। इस दिन सोवियत संघ ने दुनिया का पहला मैन मेड यानि इंसानों द्वारा बनाया गया सैटेलाइट लॉन्च किया गया था। दुनिया के पहले सैटेलाइट का नाम Sputnik था। ये ख़बर काफी तेजी से पूरी दुनिया में फैल गई।
अमेरिका को इस ख़बर से काफी हैरानी हुई क्योंकि अमेरिका भी काफी वक्त से दुनिया का पहला मानव निर्मित सैटेलाइट बनाने में लगा हुआ था लेकिन सोवियत संघ ने उससे पहले ये कर दिखाया है। इस वजह से दोनों देशों के बीच थोड़ी नोक-झोंक शुरू हुई और इन दोनों देशों के बीच एक कोल्ड वार (COLD WAR) शुरू हो गई।
अमेरिका ने किया ARPA का निर्माण 1957 में अमेरिका के राष्ट्रपति Dwight D. Eisenhower थे। उन्होंने सोवियत संघ के साथ हुई नोक-झोंक के बाद 1958 में एक एजेंसी को निर्माण किया जिसका नाम था ARPA। ARPA यानि Advanced Research Projects Agency। इस एजेंसी को देश की तकनीकी ताकत में काफी ज्यादा और तेजी से बढ़ाने के लिए बनाया गया था। इस एजेंसी के नाम में काफी बदलाव हुए। 1972 में इसका नाम DARPA हो गया यानि Defense Advanced Research Projects Agency। इसके बाद 1993 में इसका नाम बदलकर वापस ARPA रखा गया और फिर 1996 में इसका नाम बदलकर DARPA रखा गया। इस एजेंसी की शुरुआत करने के पीछे अमेरिका के राष्ट्रपति का मकसद अपने देश में सांइस एंड टेकनोलॉजी को दूसरे देशों की तुलना में आगे बढ़ाना था।


इंटरनेट जैसी किसी चीज को बनाने की शुरुआत इसी झगड़े के साथ हुई थी। आपको बता दें कि उस वक्त कंप्यूटर का साइज काफी बड़ा होता है। उस वक्त कंप्यूटर को रखने के लिए एक बड़े कमरे की जरूरत होती थी। हम अगर आसान भाषा में बात करें तो उस वक्त के कंप्यूटर में मैगनेटिक टेप का इस्तेमाल किया जाता था। उस वक्त मल्टीपल कंप्यूटर यानि एक से ज्यादा कंप्यूटर को किसी एक नेटवर्क से जोड़ने का कोई भी जरिया नहीं था। उन दिनों ARPA तेजी से अपने विज्ञान को विकास कर रही थी लेकिन मल्टीपल कंप्यूचर के एक साथ काम ना कर पाने की समस्या उनके काम में बाधा डाल रही थी। इस वजह से ARPA ने सोचा कि क्यों ना कुछ ऐसा बनाया जाए जिसके जरिए बहुत सारे बहुत सारे कंप्यूटर को एक साथ एक नेटवर्क पर चलाया जा सके। ARPA ने उस वक्त एक ऐसी नेटवर्किंग टेक्नोलॉजी बनाने के लिए एक टेकनिकल कंपनी की मदद ली। उस कंपनी का नाम BBN Technologies था। इन दोनों का एक मकसद चार अलग-अलग ओपरेटिंग सिस्टम वाले चार अलग-अलग कंप्यूटर को एक साथ एक सिंगल नेटवर्क के जरिए कनेक्ट करना था। इस नेटवर्क का नाम APRANET दिया गया।



ARPANET 
दुनिया का पहला ऐसा इंटरनेट कनेक्शन बन गया जिसमें TCP/IP प्रोटोकॉल यानि इंटरनेट रूल को लागू किया गया। आपको बता दें कि यहां TCP का मतलब Transmission Control Protocol और IP का मतलब Internet Protocol है। आपने IP Address के बारे में तो जरूर सुना होगा। इसका मतलब यहीं होता है कि Internet Protocol का एड्रैस क्या है।



ARPANET+PRNET+SETNET = INTER-NETWORKING लिहाजा दुनियाभर में इंटरनेट का आना और फैलना ARPA की ही देन है। इसके बाद लगातार इस नेटवर्क सिस्टम को बेहतर बनाने का काम चलता रहा। 1973 में इंजीनियर्स और वैज्ञानिकों ने सोचा कि क्योंकि ARPANET को PACKET RADIO से जोड़ दिया जाए। पैकेट रेडियो एक डिजिटल रेडियो संचार मोड है जिसका उपयोग डेटा के पैकेट भेजने के लिए किया जाता है। पैकेट रेडियोडेटाग्राम प्रसारित करने के लिए पैकेट स्विचिंग का उपयोग करता है। पैकेट रेडियो का उपयोग डेटा लंबी दूरी तक संचारित करने के लिए किया जा सकता है। पैकेट रेडियो को अगर आसान भाषा में समझाए तो इसका इस्तेमाल दो कंप्यूटर को कनेक्ट करने के लिए रेडियो ट्रांसमिटर और रिसिवर का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी वजह से दो कंप्यूटर को जोड़ने के लिए किसी फोन लाइन या किसी वायर की जरूरत नहीं होती थी। ARPANET और PRNET को जोड़ने के लिए तीन साल तक लगातार काम चला और फिर इंजीनियर दो कंप्यूटर को एक नेटवर्क के जरिए कनेक्ट कर पाए। इसके एक साल के बाद इन दोनों नेटवर्क के SETNET यानि कि सैटेलाइट नेटवर्क से कनेक्ट किया गया जोकि पूरी दुनिया को जोड़ने के लिए काफी जरूरी था। इस तरह से उस वक्त दुनियाभर के बहुत सारे नेटवर्क को एक साथ जोड़ा गया थाइस वजह से इसका नाम INTER-NETWORKING रखा गया। इसी INTER-NETWORKING को आज के जमाने में शॉर्ट फॉर्म देकर लोग इंटरनेट कहने लगे हैं।
WWW 
की शुरुआत इस नेटवर्क के सामने आते ही पुरी दुनिया के बहुत सारे नेटवर्क इससे कनेक्ट होने लगे। इसके बाद 1989 में एक इंग्लिश वैज्ञानिक Tim Berners-Lee ने एक नया सिस्टम तैयार किया जिसके जरिए दुनिया का हर इंसान कहीं से भी किसी भी चीज की जानकारी इंटरनेट पर एक URL के जरिए ढूंढ सकता है। इस सिस्टम को WORLD WIDE WEB यानि WWW का नाम दिया गया। www की सफलता के बाद इसमें लगातार विस्तार किए गए और आज के जमाने में हमारे पास इंटरनेट का एक विस्तार रूप मौजूद है। आज कंप्यूटर के साथ-साथ फोनस्मार्टफोनस्मार्ट टीवीस्मार्ट वॉचटैबकैमरा जैसी बहुत सारी चीजों से भी इंटरनेट को जोड़ दिया गया है। इसी तरह से आने वाले कुछ सालों के बाद हमारे आसपास की लगभग हर चीज इंटरनेट से जुड़ जाएगी और हमारी जिंदगी काफी आसान बन जाएगी।







No comments